Thursday, June 1, 2023

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 मैं ! बुनकर मज़दूर

हुनर मेरा लूम चलाना।
मेरी कोई उम्र नहीं है...
मैं एक नन्हा बच्चा भी हो सकता हूँ
जहां मेरे नन्हे हाथों में किताब होनी चाहिए
वहां मैं हाथों से लूम चलाता हूँ
मैं एक जवान भी हो सकता हूँ
आप मुझे देख सकते हैं
लूम पर सुंदर साड़ियां बुनते हुए,
यदि वहाँ न दिखूँ
तो मुझे देख सकते हैं
शहरों के होटलों में बर्तन धोते हुए
रिक्शा चलाते हुए,
गुलामी करते हुए।
मैं बूढा भी हो सकता हूँ।
जहां मुझे बुढापे में सुख चाहिए
वहां कंधे पर साड़ी का बोझ लिए
भटक रहा हूँ अंतहीन दिशा में।
-डॉ. अबू होरैरा

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