वहश्तें मेरे देश मेंरोज़ रोज़ होने लगीज़िन्दगी लाशों को अक्सरकांधों पर ढोने लगीज़ख्मों पर फ़रेब केपैबंद लगाते रहनुमासिसायतें बेशर्म हुई और
No comments:
Post a Comment