मजबूरी थी पैसों की हमें घर से निकलना पड़ा,चलो ठीक ही कुछ माह बाद हम सोचेंगे
मजबूरी थी पैसों की हमे, उसे शौक बताना पड़ा।
मिलते थे पैसे कुछ कम ही उसे ज्यादा बताना पड़ा
मजबूरी थी पैसों की हमें घर से निकलना पड़ा,
बात जब पैसों की हुई बोल सर ने मुझसे दिया
पास तुम इंटर हो केवल,
लेवल तेरा न है बड़ा
दे तो केवल इतना ही सकता और मेरे बस की बात नहीं
संस्था हमारी छोटी कोई बड़ी दुकान नहीं,
चुप हुआ मैं इतना सुनकर कुछ और बात न की,
एक बात केवल बोला ,
मैं अभी भी पढ़ रहा
मैं पढ़ा सकता बहुत अच्छा, जितना की आप भी सकते न सोच

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