आज रंगने को तेरे रंग में
ब्रज की गलियों में आई हूं
तुम्हारी पैजानियों की धुन से
कान्हा!! तुम तक दौड़ी आई हूं
यूं तो रंगी हू कबसे
तेरी ही प्रीत में कान्हा!!
पर आज तेरे हाथों रंगने मैं वृंदावन तक आई हूं
कान्हा!! देखो न मैं भागी चली आई हूं
फिरती हूं मतवाली सी
गली गली बरसाने की
मैं श्री राधे के चरणों की धूल पाने आई हूं
कान्हा!! देखो न मैं भागी चली आई हूं
रास खेलने को मतवाले
देखो मैं निधिवन में खड़ी हूं
रंगने को तुझसे मैं एक यही आस लेकर आई हूं
कान्हा!! देखो न मैं भागी चली आई हूं
उड़ रहा गुलाल
रंगमय हो गया है ये संसार
चारों ओर हो रही है पुष्प वर्षा
पर इन आंखों को है बस तेरा ही इंतजार
तेरे प्रेम मे बेसुध होकर, मैं मथुरा में आई हूं
कान्हा!! देखो न मैं भागी चली आई हूं
यूं तो गिरा है हर रंग मुझपर
तुम्हारी इन गलियों में
फिर भी चढ़ा न कोई रंग , मैं तुझसें रंगने आई हूं
कान्हा!! देखो न मैं भागी चली आई हूं
न खेलनी लड्डू होली न ही लट्ठ मारने है
मैंने तो रंगना है बस तेरे रंग में
मिलकर फूल उड़ाने हैं
इसी आस में यमुना तट पर आई हूं
कान्हा!! देखो न मैं भागी चली आई हूं
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