Monday, June 19, 2023

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Monday, June 5, 2023


 

Chandani new shong facebook like 

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Sunday, June 4, 2023


 me and my best friends 


 chandani

Saturday, June 3, 2023

वहश्तें मेरे देश में
रोज़ रोज़ होने लगी
ज़िन्दगी लाशों को अक्सर
कांधों पर ढोने लगी

ज़ख्मों पर फ़रेब के
पैबंद लगाते रहनुमा
सिसायतें बेशर्म हुई और
मन की बात होने लगी
मजबूरी थी पैसों की हमें घर से निकलना पड़ा,
मजबूरी थी पैसों की हमे, उसे शौक बताना पड़ा।
मिलते थे पैसे कुछ कम ही उसे ज्यादा बताना पड़ा
मजबूरी थी पैसों की हमें घर से निकलना पड़ा,
बात जब पैसों की हुई बोल सर ने मुझसे दिया
पास तुम इंटर हो केवल,
लेवल तेरा न है बड़ा
दे तो केवल इतना ही सकता और मेरे बस की बात नहीं
संस्था हमारी छोटी कोई बड़ी दुकान नहीं,
चुप हुआ मैं इतना सुनकर कुछ और बात न की,
एक बात केवल बोला ,
मैं अभी भी पढ़ रहा
मैं पढ़ा सकता बहुत अच्छा, जितना की आप भी सकते न सोच
चलो ठीक ही कुछ माह बाद हम सोचेंगे
कहानी सुनाई हमने वो दीवानी हो गई
मोहब्बत जगाई हमने तो बेईमानी हो गई
बिछड़ना तो मुकद्दर में लिखा होता है
जब पता चला कि उनकी भी नीलामी हो गई
मोहब्बत जगाई हमने तो बेईमानी हो गई
बिछड़ना तो मुकद्दर में लिखा होता है
जब पता चला कि उनकी भी नीलामी हो गई

Friday, June 2, 2023

तोड़कर चांद लाएं यह होगा नहीं ।
जुगनुओं से ही दिल अब लगा लीजिए ।
जिंदगी में अगर आपके दर्द हो ।
फिर भी अरमान दिल में जगा लीजिए ।
तोड़कर--------------------------

आदमी बे-मुरब्बत हुआ आजकल ।
वो बदलता है रंग आज हर एक पल ।
ढूंढता है शुकूॅं की वो आवोहवा ।
देख लो जिसको भी आजमा लीजिए ।
तोड़कर-------------------------

फूल कलियां नहीं पथ के कांटे हैं यह ।
आपने भी चमन से ही छांटे हैं यह ।
जिसको अपना कहो बस वही शूल है ।
चाहे कोई भी कितना सगा लीजिए ।
तोड़कर-------------------------


 क्या जाता है तेरा दुनियां

दो दिल मिलने नहीं देती।
मुहब्बत के चमन को क्यूं
बता खिलने नहीं देती।।
दिले बेताब की उलझन
समझती क्यों नहीं आखिर।
वफा की रौशनी को भी
तू क्यों जलने नहीं देती।।
मुहब्बत ही जमाने में
क्यों तुझको रास ना आए।
मिलाकर कदमों से कदमों को
क्यों चलने नहीं देती।।
कि देकर गम जुदाई का
गिराया हमको राहों में।
बता "बौला" क्यों ये दुनियां
हमें उठने नहीं देती।।
बलजीत सिंह
>
पैसों से नहीं मिलती है हर चीज दहर में,
मिलती है सबको मौत उसकी जान की एवज़।
आना वो अयादत के लिए गाहे-ब-गाहे,
मुश्ताक़-ए-जाँ-नवाज़ी का अंदाज़ है महज़।

Thursday, June 1, 2023

एक रोज़ आपसे किनारा कर के
हम भी देखेंगे फाकों में गुजारा कर के

जमीर जगेगा या आंखों को शर्म आयेगी
जब इबादत को जायेंगे आप तौबा कर के

ये तो सच है की हमने सारी उम्र कुछ न किया
आपने क्या हासिल किया हम जैसों से किनारा कर के

जाइए जा कर आसमान को छू लीजिए
हमारी बज्म में ना आइए अपना खसारा कर के

हम जैसे लोग तो खुद को भी नहीं लगते अच्छे
आपने अच्छा किया,बहुत अच्छा किया हमसे किनारा कर के
यह दौर है रंजिश मुसीबत का
राहत का यहाँ कोई काम नही
मासूम की गर्दन कटनी 'उपदेश'
नाज़ शराफ़त का कोई नाम नही
वफा करते समय
कुछ भी याद नही रहा
मोहब्बत में भीगने का
मियाद नही रहा
खुशबू उड गई
तितली उड़ जाने के बाद
गुलशन का भौंरा
तब से आजाद नही रहा

जज्बातों को देखूं तो तेरी याद
ख्वाबों को देखूं तो तेरी याद

हुस्न का सोचूं तो भूल जाऊं
आईने को देखूं तो तेरी याद

किताब को देखूं तो भूल जाऊं
कलम को देखूं तो तेरी याद

जख्मों को देखूं तो भूल जाऊं
मरहम को देखूं तो तेरी याद

सितम को देखूं तो भूल जाऊं
लगन को देखूं तो तेरी याद

मेरा अकेलापन है कितना आजाद
प्रेयषी फिर भी आती है तेरी याद
-कैलाश 
एक रोज़ आपसे किनारा कर के
हम भी देखेंगे फाकों में गुजारा कर के

जमीर जगेगा या आंखों को शर्म आयेगी
जब इबादत को जायेंगे आप तौबा कर के

ये तो सच है की हमने सारी उम्र कुछ न किया
आपने क्या हासिल किया हम जैसों से किनारा कर के

जाइए जा कर आसमान को छू लीजिए
हमारी बज्म में ना आइए अपना खसारा कर के

हम जैसे लोग तो खुद को भी नहीं लगते अच्छे
आपने अच्छा किया,बहुत अच्छा किया हमसे किनारा कर के

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 मैं ! बुनकर मज़दूर

हुनर मेरा लूम चलाना।
मेरी कोई उम्र नहीं है...
मैं एक नन्हा बच्चा भी हो सकता हूँ
जहां मेरे नन्हे हाथों में किताब होनी चाहिए
वहां मैं हाथों से लूम चलाता हूँ
मैं एक जवान भी हो सकता हूँ
आप मुझे देख सकते हैं
लूम पर सुंदर साड़ियां बुनते हुए,
यदि वहाँ न दिखूँ
तो मुझे देख सकते हैं
शहरों के होटलों में बर्तन धोते हुए
रिक्शा चलाते हुए,
गुलामी करते हुए।
मैं बूढा भी हो सकता हूँ।
जहां मुझे बुढापे में सुख चाहिए
वहां कंधे पर साड़ी का बोझ लिए
भटक रहा हूँ अंतहीन दिशा में।
-डॉ. अबू होरैरा

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एक रोज़ आपसे किनारा कर के
हम भी देखेंगे फाकों में गुजारा कर के

जमीर जगेगा या आंखों को शर्म आयेगी
जब इबादत को जायेंगे आप तौबा कर के

ये तो सच है की हमने सारी उम्र कुछ न किया
आपने क्या हासिल किया हम जैसों से किनारा कर के

जाइए जा कर आसमान को छू लीजिए
हमारी बज्म में ना आइए अपना खसारा कर के

हम जैसे लोग तो खुद को भी नहीं लगते अच्छे
आपने अच्छा किया,बहुत अच्छा किया हमसे किनारा कर के

 

 

मैं आवाज़ देती और तू सुन लेता काश कभी ऐसा हो जाता
मैं कहती अभी न जा मेरे हमदम और तू ठहर जाता
काश कभी ऐसा हो जाता मेरे इशारों को भी मेरी जान
तू समझ लेता काश कभी ऐसा हो जाता
मैं हूं तपती धूप जैसी और तू कभी बादल बन जाता
काश कभी ऐसा हो जाता मैं चांद के जैसे छुपती
निकलती और तू भोर का तारा हो जाता
काश कभी ऐसा हो जाता मैं तो हूं ढलती शाम के जैसी
तू उगता सूरज हो जाता काश कभी ऐसा हो जाता
मैं तो हूं बस तेरे एक दिल की पूजारन
तू मंदिर गिरजा कैलाश हो जाता
काश कभी ऐसा हो जातातू ही आए नज़रमैं जब
 देखूं जिधर बस तू ऐसा दर्पण हो जाता
काश कभी ऐसा हो जाता इन चार पहर में
कोई एक पहर तू कभी तो मेरे पास होता
कभी तो एक ऐसा पहर हो जाता
काश कभी ऐसा हो जाता....

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 गुजरेगा जब 'आज' खुशी से,

तभी तो प्यारा 'कल' आएगा,
आज अगर ना गुज़रा अच्छा,
'कल' फिर हमको छल जाएगा।

जो भी करना 'आज' में करना
'कल' में वक्त निकल जाएगा।

atOptions = { 'key' : '9315ae6c6964c6dc26aafe4023e7e9c7', 'format' : 'iframe', 'height' : 90, 'width' : 728, 'params' : {} }; document.write(''); style="border: 0px; box-sizing: border-box; list-style-type: none; margin: 0px; outline: 0px; padding: 0px;" />'आज' है अपने वश में लेकिन
'कल' में वक्त निकल जाएगा।

'आज' जो बीता 'कल' आएगा
'आज' फिर लौट नहीं पाएगा।
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दूसरों के धन पर
दूसरों के तन पर
नील गगन पर
नजर न कर
ओ लोभी नर!
अपने धन पर
अपने मन पर
अपने तन पर
अपने वतन पर
मगन रह कर
कर्तव्य अपना कर
निरंतर,ओ नारी नर!
- सहज
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आज रंगने को तेरे रंग में
ब्रज की गलियों में आई हूं
तुम्हारी पैजानियों की धुन से
कान्हा!! तुम तक दौड़ी आई हूं

यूं तो रंगी हू कबसे
तेरी ही प्रीत में कान्हा!!
पर आज तेरे हाथों रंगने मैं वृंदावन तक आई हूं
कान्हा!! देखो न मैं भागी चली आई हूं

फिरती हूं मतवाली सी
गली गली बरसाने की
मैं श्री राधे के चरणों की धूल पाने आई हूं
कान्हा!! देखो न मैं भागी चली आई हूं

रास खेलने को मतवाले
देखो मैं निधिवन में खड़ी हूं
रंगने को तुझसे मैं एक यही आस लेकर आई हूं
कान्हा!! देखो न मैं भागी चली आई हूं

उड़ रहा गुलाल
रंगमय हो गया है ये संसार
चारों ओर हो रही है पुष्प वर्षा
पर इन आंखों को है बस तेरा ही इंतजार
तेरे प्रेम मे बेसुध होकर, मैं मथुरा में आई हूं
कान्हा!! देखो न मैं भागी चली आई हूं

यूं तो गिरा है हर रंग मुझपर
तुम्हारी इन गलियों में
फिर भी चढ़ा न कोई रंग , मैं तुझसें रंगने आई हूं
कान्हा!! देखो न मैं भागी चली आई हूं

न खेलनी लड्डू होली न ही लट्ठ मारने है
मैंने तो रंगना है बस तेरे रंग में
मिलकर फूल उड़ाने हैं
इसी आस में यमुना तट पर आई हूं
कान्हा!! देखो न मैं भागी चली आई हूं


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काली घटा छाने लगी है, मुझे तेरी याद आने लगी है। 
ठंडी हवा दिल को जलाए, बिजलियां भी मुझको डराए,
 तन्हाइयां अब खाने लगी हैं, मुझे तेरी याद आने लगी है।
  -हासानंद कागा